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तहसीलदार बारा ने दिया बड़ा फैसला — छेदीलाल को कब्जे से हटाने का आदेश, मगर प्रशासन की कार्रवाई पर सवाल।
प्रयागराज। बारा तहसील के अंतर्गत ग्राम सभा की जमीन पर कब्जे का एक मामला पूरे इलाके में चर्चा का विषय बना हुआ है। तहसीलदार न्यायालय बारा ने राजस्व अभिलेखों की जांच के बाद कब्जेदार छेदीलाल पुत्र साधुराम कश्यप निवासी शंकरगढ़, परगना अरेट, तहसील बारा, जिला प्रयागराज के विरुद्ध कड़ा आदेश जारी करते हुए उसे बेदखल करने का फरमान सुनाया था। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि सख्त आदेश आने के बावजूद अब तक जमीन से कब्जा नहीं हटाया गया है। यह मामला 08 जनवरी 2019 से जुड़ा है। क्षेत्रीय लेखपाल की जांच रिपोर्ट में यह स्पष्ट हुआ कि छेदीलाल ने खसरा संख्या 138, रकबा 0.05780 हेक्टेयर जमीन पर ग्राम सभा की भूमि पर अवैध रूप से मकान बना लिया है। रिपोर्ट के अनुसार उसने इस जमीन को अपनी पैतृक संपत्ति की तरह उपयोग करते हुए ईंट-पत्थर से पक्का निर्माण करा लिया। इस रिपोर्ट के आधार पर तहसीलदार बारा के न्यायालय में मामला दर्ज हुआ और छेदीलाल को नोटिस जारी किया गया। मगर न तो वह स्वयं उपस्थित हुआ और न ही उसके किसी प्रतिनिधि ने सफाई दी। उसकी चुप्पी ने खुद यह साबित कर दिया कि कब्जा अवैध है।तहसीलदार बारा ने अपने निर्णय में कहा कि “छेदीलाल को कब्जे से बेदखल किया जाए और राजस्व अभिलेखों में भूमि को ग्राम सभा के नाम दर्ज किया जाए।” आदेश में यह भी कहा गया कि ग्राम सभा की भूमि पर कब्जा करना अपराध की श्रेणी में आता है और ऐसे लोगों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी। लेकिन आदेश को महीनों बीत गए, परंतु मौके पर कब्जा जस का तस बना हुआ है। ग्राम सभा के लोग लगातार यह सवाल उठा रहे हैं कि जब न्यायालय ने साफ-साफ बेदखली का आदेश दे दिया, तो फिर प्रशासन ने अब तक कार्रवाई क्यों नहीं की? ग्रामवासियों का कहना है कि “तहसीलदार साहब का आदेश तो आ गया, पर जमीन आज भी कब्जेदार के कब्जे में है। अगर आदेश का पालन नहीं होगा, तो फिर कानून का डर किसे रहेगा?” पूरा शंकरगढ़ क्षेत्र इस आदेश के बाद से हलचल में है। कुछ लोग इसे प्रशासन की निष्क्रियता मान रहे हैं, तो कुछ कह रहे हैं कि अब यह मामला उच्च अधिकारियों तक जाएगा। लोगों का कहना है कि अगर एक बार इस जमीन पर कब्जा हट गया, तो इलाके में फैले अन्य कब्जाधारियों में भी डर पैदा होगा। यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति या एक गांव का नहीं, बल्कि पूरे जिले के लिए मिसाल है। तहसीलदार बारा ने अपने आदेश से यह तो दिखा दिया कि शासन-प्रशासन अब सख्त है, पर ज़मीन से कब्जा हटे तभी न्याय पूरा माना जाएगा। ग्रामीणों के बीच अब एक ही सवाल गूंज रहा है—“जब न्यायालय ने आदेश दे दिया, तो फिर कार्रवाई क्यों रुकी हुई है?” और एक ही आवाज़ सुनाई दे रही है—“सरकार की जमीन पर कब्जा करने वालों का वक्त खत्म हो चुका है… बस प्रशासन की सख्त कार्रवाई बाकी है।”